तुम क्या जानो एक स्त्री का दर्द

जनवरी का महीना, मौसम था सर्द।
एक मर्द ने अस्मिता की पार की हद।
पड़ी उसे मार, किया थाने में सुपुर्द।
कई लोगों ने की मदद, बने हमदर्द।
फिर भी वह बोली "तुम तो हो मर्द "
"तुम क्या जानो एक स्त्री का दर्द। "

जुर्म करने वाला भी मर्द।
और बचाने वाला भी मर्द।
सज़ा देने वाला भी मर्द।
सज़ा पाने वाला भी मर्द।
फिर भी वह बोली "तुम तो हो मर्द "
"तुम क्या जानो एक स्त्री का दर्द। "

पुरुष प्रधान समाज में जीने का दर्द।
रीति-रिवाज़ों को ढ़ोते रहने का दर्द।
इज्ज़त  को बचाए रखने का दर्द।
न बचा पाई तो यातनाओं का दर्द।
फिर से वह बोली "तुम तो हो मर्द "
"तुम क्या जानो एक स्त्री का दर्द। "


Comments

Popular posts from this blog

एक हाँ कहते कहते

आँखों से शिकार

कभी तो वो दिन आएगा, कभी तो वो रात आएगी