आख़िरी इल्तज़ा

शायद तेरे बगैर जीना ही उस  ख़ुदा की रज़ा है.
अब  इस रूहानी आग़  में जलना ही मेरी सज़ा है .
पर तेरे इश्क़ में फ़ना होने का अलग ही मज़ा है .
बस तेरा एक दीदार ही मेरी आख़िरी इल्तज़ा है .


Comments

Popular posts from this blog

Fizzle of Nile

एक हाँ कहते कहते